Thursday, December 10, 2009

दास्ताँ ऐ शहर



आगरा एक रूमानी शहर
बीस हजार मजदूरों द्वारा 17 साल में तैयार हुआ 'ताज महलÓ
कल कल बहता यमुना सरिता का जल,
आकाश से बरसती दूधिया चान्दनी निर्मल,
एक प्रेमी की पत्थर से लिखी गई गज़ल,
याद लिए अतीत की खड़ी इमारत अचल,
शायद यही है मोहब्बत की निशानी ताज महल।
सदियों से कवियों, कहानीकारों, फिल्मकारों, चित्रकारों का प्ररेणा स्रोत रहा ताज महल। आज भी चान्दनी रात में इस तरह प्रतीत होता है जैसे एक अनिंध सुन्दरी अपने प्रेमी के इन्तज़ार में सदियों से धवल चान्दनी का श्रृंगार करके बैठी हो, ताज महल से टकराकर हवाओं से बजती सिटियां ऐसी प्रतीत होती हैं जैसे कोइ प्रेमिका, प्रेमी के वादा करके न आने पर सिसकियां भर रही हो। निश्चल यमुना के किनारे चान्दनी में चमकते रेत के कण , यदाकदा चान्द के सामने बादलों के आ जाने से दूर तक बिखरी हुई सफेद रेत पर बादलों से बनी आकृतियां ऐसी दिखलाई पड़ती हैं, जैसे अल्हड़ सुन्दरियां अपने प्रेमी से मिलकर आई हों और इस खुशी से आत्म-विभोर होकर नृत्य करने लगी हों।
सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध में बनी यह खूबसूरत इमारत आज जहां एक बादशाह की अपनी बेगम से बेपनाह मोहब्बत की याद ताज़ा कराती है वहीं अपनी शिल्प कला के बे-जोड़ सौन्दर्य से सबको आश्चर्य चकित करती है।
इतिहास के पन्नों से
मोहब्बत की इस बेपनाह मिसाल के बारे में जानने के लिए हमें कुछ इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। किस्सा है सोलहवीं शताब्दी का जब खूबसूरत इक्कीस वर्षीय अर्जुमन बानो बेगम ने जहांगीर के तीसरे बेटे मुगल राजकुमार खुर्रम का दिल इस कदर जीत लिया कि वह सदा के लिए उसका हो गया। सन् 1628 में मुगल सलतनत के उत्तराधिकार के खूनी संघर्ष के बाद मोहम्मद खुर्रम ने राजसिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया । राजा बनने के बाद खुर्रम ने अपना नाम शाहजहां अर्थात पूरे जहान का बादशाह रख लिया और अपनी महबूबा का नाम मुमताज रखा। लेकिन इन दोनो प्रमियों की किस्मत में खुशियां कम और दर्द ज्यादा था। 1631 में शाहजहां को दक्षिण में युद्घ के लिए जाना पड़ा । बेगम मुमताज जबतक जीवित रही बादशाह के साथ रही। इसी बीच शाहजहां के चौदहवें बच्चे को जन्म देते समय बेगम बादशाह को प्यार की अग्नि में जलते अकेला छोड़कर चली गयी। अपनी जान से ज्यादा मोहब्बत करने वाला मुगल सम्राट, 39 वर्षीय बेगम की मौत से टूट गये। मुमताज ने बादशाह के 14 बच्चों को जन्म दिया जिनमें चार लड़के व तीन लड़कियां ही जीवित रही। रानी की असमय मृत्यु से राजा इस कदर दुखी हुए कि पूरे दो साल तक राज्य में शोक मनाया जाता रहा। दो वर्षों तक न तो कोई उत्सव मनाया गया न ही कोई अन्य खुशियां और फिर बादशाह शाहजहां ने अपनी अनिंध प्रिय बेगम की याद में एक शानदार सफेद पत्थर की इमारत बनाई जो भारत के लिए ही नहीं बल्कि संसार के लिए एक आश्चर्य बन गई।
ताज महल
इस आश्चर्यजनक इमारत के निर्माण की भी एक अलग कहानी है। कहा जाता है कि जहां आज ताज महल है वहां ंकभी राज मान सिंह का बाग हुआ करता था जो आमेर (जयपुर) के राजा जय सिंह के दादा थे। शाहजहां ने इस बाग के बदले राजा जय सिंह को चार हवेलियां देकर इसे लिया और 1633 में ताज महल कर निर्माण कार्य शुरू हुआ। कहा जाता है कि इस इमारत के निर्माण में 20 हजार मजदूरों ने 17 सालों तक काम किया । दुनिया के बेहतरीन कारीगरों ने इस अजीमोशान इमारत के निर्माण में अपना योगदान किया। ताज महल को बनने में मुुख्य भूमिका निभाने वाला कारीगर बगदाद का था। डबल गुंबद को बनाने के लिए माहिर कारीगर पार्शिया से बुलाये गये थे। दीवारों पर नक्काशी करने वाला कारीगर दिल्ली से बुलाया गया था। यमन से सुलेमानी पत्थर ,अरेबिया से मूंगा, बुन्देलखण्ड से ग्रनेट,पाशर््िाया से जम्बूमणी पत्थर मंगाया गया । निर्माण पूरा होने पर इस इमारत को एक रानी के गहनों की तरह सजाया गया। ताज महल में इन्डो-पर्शियन शिल्प का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है।
आगरा का लाल किला
आगरा यमुना के पश्चिमी किनारे पर बसा मुगल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। 1526 में इब्राहिम लोधी की पानीपत के युद्घ में मृत्यु के बाद अकबर ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। इसी समय आगरा किले की नींव रखी गयी। ताज के बाद यह इमारत यहां की बेहतरीन इमारतों में से एक है। इसका निर्माण 1565 मे शुरू हुआ और लगभग 8 साल में यह किला बनकर तैयार हुआ। उस समय इय किले के लागत 35 लाख रूपए आई थी। यह किला उस समय के बेहतरीन शिल्पकार काजि़म खान मीर बारू बाहर की देख रेख में बनाया गया। इस किले के अन्दर कई किले बनाए गये हैं जिनका निर्माण अकबर ने अपने राज्य का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए किया था। अबुल-फज़ल के अनुसार इस किले में 500 से ज्यादा इमारतों का निर्माण कराया गया था जिन्हें बाद के बादशाहों ने गिराकर संगमरमर की इमारतें बनवाई।
फतेहपुर सीकरी
आगरा से 37 किलोमीटर की दूरी पर अकबर ने लाल पत्थर के एक शहर का निर्माण कराया। जिसका नाम फतेहपुर सिकरी पड़ा । बादशाह अकबर इसको अपनी राजधानी बनाना चाहते थे। किन्तु बाद में पानी की कमी के कारण अकबर को यह विचार छोडऩा पड़ा । फतेहपुर सीकरी का निर्माण 1571 से 1585 के मध्य हुआ। यह शहर मुगल और हिन्दू शिल्प कला का नायाब नमूना कहा जा सकता है। यहां बने बुलन्द दरवाजे की ऊंचाई 54 मीटर है, जो पर्यटकों को अचंभित करती है।
अकबर का मकबरा (सिकन्दरा)
आगरा से चार किलोमीटर की दूरी पर बना यह मकबरा एक खूबसूरत इमारत है अकबर ने इस मकबरे का निर्माण स्वयं शुरू करा दिया था। इस मकबरे में प्रयोग की गई निर्माण कला आज भी हिन्दू, ईसाई, इस्लामिक, बुद्घ एवं जैन शिल्प कला का एक शानदार मिश्रित रूप है।

जामा मस्जिद या जामी मस्जिद
शाहजहां द्वारा 1648 में इसको बनाया गया था। इसके मुख्य दरवाजे पर लिखा है कि यह इमारत जहांआरा बेगम द्वारा बनाई गई है। जो शाहजहां की सबसे प्रिय बेटी थी। बाद के दिनों में जब शाहजहां को कैद में डाल दिया गया था तब जहांआरा ने ही बादशाह की सबसे ज्यादा ख्याल रखा और एक समय ऐसा भी आया जब जहांआरा ने बादशाह की सेवा के लिए स्वयं भी जेल में रहने लगी। निर्माण कला के लिहाज से इसके गुंबद की आकृति व निर्माण अन्य इमारतों से भिन्न है।
चीनी का रोजा
चमकदार टाइल्स से बना यह गुंबद यहां आने वालों का ध्यान अननायास ही अपनी ओर खींच लेता हे। यह मकबरा चीनी कवि ,विद्वान और बाद में शाहजहां के प्रधान मंत्री बने आलम अफज़ल खल मुल्लाह शकुर्रल्लाह की याद में निर्मित किया गया है।
दयाल बाग
आगरा से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दयाल बाग सोमी बाग के नाम से भी जाना जाता है। राधा स्वामी पंथ के संस्थापक स्वामी महाराज का निवास व उनकी समाधि यहीं पर है। इसकी मुख्य इमारत जादूई प्रभाव छोड़ती है। 110 फीट की ऊंचाई की यह इमारत पूर्णत: सफेद मार्बल से बनी है। इसके बारे में एक बात बड़ी रोचक है , कहा जाता है कि इसका निर्माण कार्य कभी भी नहीं रूका, पिछले सौ सालों से आज तक यहां निर्माण कार्य चल रहा है , जो अपने आप में एक नायाब किस्सा है।

बोक्स
एक नज़र में आगरा

सन्दीप अग्रवाल
आगरा ऐतिहासिक नगर जो पूरे विश्व के नक्शे पर अलग से चिह्निïत है क्योंकि यह एक विश्व की बेशकीमती धरोहर को संजोये हुए हैं। पूरे विश्व से इस शहर में पर्यटक आते हैं, जो ताजमहल को निहारते ही रह जाते हैं।
आगरा में होटल उद्योग काफी आगे है। यहां पर अन्य शहरों की अपेक्षा अधिक पांच सितारा होटल हैं, जो हर समय व्यस्त रहते हैं। जो बिल्डर यहां आये उन्होंने इस तरफ ध्यान आकर्षित नहीं किया, आगे आने वाले समय में दिल्ली में कॉमन वेल्थ गेम्स हो रहे हैं। पर्यटक जब हिन्दुस्तान आता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य आगरा आना भी होता है। वह अपना बहुमूल्य समय में से कुछ समय आगरा बिताना चाहते हैं।
आगरा में जूता उद्योग लगभग सभी देशों के पेरों की शान बनता है। आगरा एक प्रेम नगरी है। यह प्रेम दीवानों को सामाजिक बन्धनों में रहते हुए एक अच्छे पिकनिक स्पॉट की भी आवश्यकता है। इस तरफ किसी बिल्डर का ध्यान नहीं गया।
आगरा के आसपास का मुगल कालीन उद्योग पेठा, दालमोंठ भी काफी प्रसिद्ध हैं जो किसी भी शहर की अपेक्षा एक अलग स्वाद तथा मिठास रखता है। आगरा शहर जो पिछले साल पूरे विश्व में छाया रहा है एक सुन्दर व स्वच्छ शहर है। आगरा नगर प्रमुख को पछिले दिनो आगरा कों साफ स्वच्छ रखने के लिए विदेश में सम्मानित किया गया।
आगरा ताज महोत्सव हर वर्ष 18 फरवरी से शुरू होकर तथा 27 फरवरी तक चलता है यहां पर हस्त शिल्पी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए हर वर्ष अपने नई से नई कारीगरी को प्रदर्शित करते हैं। उसको बेचकर लाभ कमाते हैं। कुछ शिल्पी तो पूर साल अपने घरों पर अपने उत्पाद बनाते रहते हैं। ताज महोत्सव में बेचकर अपनी पूरे साल की रोजी कमाते हैं।
इसलिये आगरा प्रेम का सन्देश रोजगार का सन्देश तथा सम्प्रदायिक सद्धभाव की भी सीख देता है। यहां हर समय शान्ति और सदïभाव बना रहता है, आगरा में विकास कर्ताओं के लिए काम करने का एक सुनहार अवसर है वहीं डेवलपर एवं बिल्डर के लिए भी यहां अपार संभावनाएं है।